Jivan Bina - 1 in Hindi Poems by Anangpal Singh Bhadoria books and stories PDF | जीवन बीणा - 1

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जीवन बीणा - 1

अपनी बात
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वीणा घर में रखी पुरानी , लेकिन नहीं बजाना आया ।
सारा घर उस पर चिल्लाया,जिस बच्चे ने हाथ लगाया।।
जीवन वीणा के तारों की रीति -नीति नहिं हमने जानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।१।।

मुझे पता है मेरे जैसे , हैं अनेकश: जीवन धारी ।
भटकगए जगके जंगलमें,भला-बुरा नहिं सकें विचारी।।
समझाइश है यह उन सबको,जो कर रहे यहां नादानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।२।।

वीणा है साधन कविता का,अंतरव्यथा मानवी मनकी।
भूल उजागर करती कविता, मेरे जैसे हर जीवन की ।।
दिशा भूल हो जाते जगमें,दिखतीं जब राहें अनजानी।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।३।।

एक दीप की तरह खड़ा हूं, मैं जीवन के चौराहे पर ।
भटक न जाएं लोग निज डगर,इसीलिए जल रहा निरंतर।।
राह दिखाने को तत्पर हूं, जो अपने गुरु वर से जानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।४।।

सबको दी ईश्वर ने वीणा, किंतु बजाना कुछ को आयी ।
पड़ी रही बेकार बहुत दिन,पर अब हमको भी वह भायी।।
गुरुवर ने जब पास बिठाया,तब वीणा की विधि पहचानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।५।।

जीवन वीणा
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जीवन वीणा रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।
उसे व्यर्थकी चीज मानकर,रख छोड़ी करके अनजानी।।

घर में कभी बजी होगी, उस वीणा के गूंजे होंगे स्वर ।
कदरदान बीमार पड़ गया,वीणा व्यर्थ पड़ी है जर्जर ।।
तार हिला देता है कोई, तो हो जाती है हैरानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।१।।

अगर भूल से कोई बच्चा, तार छेड़ देता वीणा के ।
उसे डांट सहनी पड़ती है, आंसू पीता है पीड़ा के।।
बिल्ली कूद निकल जाती तो,बज उठती वीणा की वानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।२।।

नींद टूट जाती लोगों की छा जाती घर में नाराजी ।
वीणा की आवाज नहीं अब, कोई भी सुनने को राजी।।
एक उपद्रव का कारण थी, वीणा की वाणी मस्तानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।३।।

शांति भंग वा शोर शराबे,का कारण वीणा को माना ।
और एक दिन बाहर फेंका, सुंदर कृति को कचड़ा जाना ।।
गुजरा एक फकीर वहां से, वीणा देख हुई हैरानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।४।।

अति आदर से उसे उठाया, और मधुर संगीत निकाला ।
लौट रहे जो उसे फेंक कर,सबको आश्चर्य में डाला ।।
मड़े,सुने जब वीणा के स्वर, बहुत हुई अंतर मन ग्लानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।५।।

राहगीर वा सब घर वाले, मधुर शब्द सुन बाहर आए ।
जिन लोगों ने वीणा फेंकी, वह भी सुन आवाज लजाए ।।
बजा रहा था वह फकीर भी, मंत्र मुग्ध सा वीणा रानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।६।।

किया बजाना बंद, फेंकने, वालों ने फिर वीणा मांगी ।
अंतर मन पछतावा जागा,ललक बजाने की भी जागी ।।
पर फकीर ने मना कर दिया, पहले सीखो इसे बजानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।७।।
लगातार अगला भाग------------